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लव इन ए टाइम मशीन

मीनू

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7824
आईएसबीएन :9788128825316

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प्रेम पर आधारित तीन लघु कहानियाँ...

Love In A Time Machine - A Hindi Book - by Minu

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लव इन ए टाइम मशीन व अन्य कहानियाँ में तीन लघु कहानियाँ हैं, जो प्रेम पर आधारित हैं। ये प्रेमकथाएं अलग-अलग कालखंड, स्थितियों व परिचितियों के ताने-बाने में बुनी गई हैं। पहली कहानी में दिव्या की खुशी का ठिकाना नहीं रहता, जब एक टाइम मशीन उसे बीस साल पीछे ले जाती है, वहाँ उसका प्रेमी प्रो. राहुल भी, उसकी तरह युवा मिलता है पर उसे शर्त माननी पड़ती है कि एक महीने में राहुल ने उसे न अपनाया तो वह सदा के लिए अनंत आकाश में खो जाएगी। वह कई तरह की योजनाएँ और रणनीतियाँ बनाती है पर आखिरी दिन तक जीत उससे दूर रहती है।

दूसरी कहानी की नायिका लाज एक विवाहित व्यक्ति से प्यार करने लगती है। कहानी तब शुरू होती है जब कंपनी उसे अजीब से ट्रेनिंग प्रोग्राम में भेज देती है वहां उसे गिरीश के शादीशुदा होने का पता चलता है तो हालात काफी उलझ जाते हैं। एक जादुई पेन्डेंट, एक ईर्ष्यालु बीवी और लाज के तीन अच्छे दोस्तों के साथ पाठकों का भरपूर मनोरंजन होता है।

एक महत्वाकांक्षी राजनेता के पुत्र के रूप में पक्का दोस्त और कैमिस्ट्री प्रोफेसर की बेटी के रूप में गर्लफ्रेंड। यही तालमेल तीसरी कहानी का खाका गढ़ता है। चंडीगढ़ हंसमार्ग कॉलेज में फाइनल ईयर का छात्र, तँवर शेखर कैसी दुविधा में पड़ता है और कैसे उसका छोटा-सा कदम सब-कुछ सँवार देता है।

मीनू एक उभरती लेखिका हैं, जिन्होंने बच्चों के लिए छोटी रहस्यमयी कहानियाँ वगैरह भी लिखी हैं, जिनमें से कुछ ग्रीन चैनल पब्लिकेशन्स द्वारा सीबीएसई व आईसीएसई की पाठ्य पुस्तकों में भी छपी हैं।

वे चेंबूर के ‘सेंट एंथोनी गर्ल्स हाई स्कूल’ व माटुंगा के ‘आर-ए. पोद्दार कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकनोमिक्स’ की छात्रा रह चुकी हैं व इन दिनों मुंबई की एक एड एजेंसी में कापीराइटर के रूप में कार्यरत हैं।

अध्याय एक
सुनसान गिरजाघर


दिव्या अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सकी। क्या ये उसके मन का मति भ्रम था ? जिस आदमी ने उसे इतना सताया, उसकी आत्मा को कुचला, और उसे फेल देखकर उसकी ओर झुका था, वही उसके प्यार में था। उसने दिखा दिया कि वह भी प्यार कर सकता है, दिखा सकता है, चाह सकता है। उसे यकीन था कि वह उस पर कोई काला जादू चला रहा था, तभी वह भी उसकी ओर खिंचती जा रही थी। पल भर के लिए तो वह इस दुखी संसार से अपना अस्तित्व ही खत्म कर देना चाहती थी, जहाँ लोग दूसरों को तकलीफ में देख, आनंद लेते थे।

कितनी अजीब बात है कि ऐसे लोग मिलते हैं और उससे भी अजीब बात है कि वे एक-दूसरे से प्यार भी करने लगते हैं। एक वह, जिसने कभी प्यार न करने की कसम खाई हो और दूसरा वो जिसे पक्का यकीन हो कि उसे प्यार नहीं करता। प्यार की भावना उसके प्रिय पात्र ‘राहुल’ से कहीं प्यारी थी। दिल और दिल की धड़कन दोनों को ही अलग करना मुश्किल था।

दिव्या इसी सोच में डूबी, खाली पड़ी जमीन के पास, एक सुनसान रास्ते पर आ गई। हालांकि देखने में काफी अच्छा था, पर ऐसा लगता था कि सालों से वहाँ कोई नहीं गया। उसके मन से एक आवाज उठ रही थी, ‘‘मैं यहाँ नहीं रहना चाहती। कृपया, मुझे कहीं और ले चलो। मैं अकेली रहना चाहती हूँ। मैं हर रोज़ ऐसे चेहरे देख-देख कर तंग आ गई हूँ, जो मुझे नहीं चाहते और जिन्हें मैं नहीं चाहती। जिंदगी सचमुच एक भार है। मुझे यह सोच कर हैरानी होती है कि लोग इतनी लंबी उम्र की दुआ क्यों माँगते हैं ! वे जीने के लिए इतनी ताकत कहाँ से बटोर लेते हैं ?’’ वह ऐसी दुनिया में पलभर के लिए भी नहीं टिकना चाहती।

‘‘कृपया मुझे किसी ऐसी अनजानी जगह ले चलो, जहाँ किसी को मेरी कानोकान खबर न हो। मुझे चिंता नहीं कि पीछे से घरवाले क्या सोचेंगे। मैं न तो किसी इंसान के बारे में और न ही किसी बीते अनुभव के बारे में सोचना चाहती हूँ। मैं सारे बंधनों से आजादी चाहती हूँ। अपने सारे अनुभव भुला देना चाहती हूँ। इसी तरह भटकना चाहती हूँ, अपने दिमाग को बेकार की बातों से दूर ले जाना चाहती हूँ। इस तरह अपने-आप में अकेले रहना, काफी हल्कापन महसूस हो रहा है, अतीत से कुछ नहीं दोहराना और न ही भविष्य को जानने की ललक है। बस मैं हमेशा के लिए इस अंतहीन राह पर यूँ ही चलना चाहती हूँ...।

इससे पहले कि वह जान पाती उसके कदम उसे एक अलग सी राह पर ले आए। वहाँ दूर-दूर तक जीवन का कोई नामोनिशान नहीं था। आसपास कुछ पेड़ खड़े थे। खुद को सहज पाते हुए उसने चाल तेज कर दी, कहीं किसी ने पुकार लिया तो उसे लौटना न पड़े। वह पहली बार जिंदगी में खुद को काफी खुश और संतुष्ट महसूस कर रही थी। वहाँ उसे सताने के लिए, घूरने के लिए या फिकरे कसने के लिए कोई न था।

करीब 20 कदम की दूरी पर उसे एक ढाँचा दिखा।
हालांकि काफी खस्ता हालत में था पर छत से लटकते क्रॉस को देखकर पता चलता था कि वह कोई गिरजाघर था। काँच की गंदी खिड़कियों व बाहरी दीवारों पर गोथिक नमूने थे।

उसके ऊपर रोमांच की भावना हावी हो गई। उसे लगा कि काश ये पल वहीं थम जाए ! रोमांच का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था। वह स्वयं उस राज़ का पर्दाफास नहीं करना चाहती थी। वह धीरे-धीरे पूरा आनंद लेते हुए आगे बढ़ने लगी। दस कदम आगे बढ़ने पर वह चर्च के ठीक सामने एक खुदी हुई कब्र देखती है। डर तो लगा लेकिन वह जीवन में इतना कुछ देख चुकी थी, कि अगर वो दिल के दिखाए रास्तों पर कदम आगे न बढ़ाती तो खुद को कभी माफ न कर पाती।

पास आने पर उसने ध्यान से देखा। चर्च पत्थर से बना था और कई जगह लकड़ी इस्तेमाल की गई थी। लकड़ी का क्रॉस चटक गया था और यहाँ-वहाँ काई उग आई थी। यहाँ-वहाँ कुछ बेंच इस उम्मीद में पड़े थे कि किसी दिन वहां कोई आएगा, प्रार्थना करेगा। अंदर का तापमान काफी कम था। अचानक उसकी आत्मा पर एक तरह की शांति हावी हो गई। उसके दिमाग ने सोचना बंद कर दिया। वह अपने दिल की हर धड़कन को, बहती हवा के साथ कदमताल करते सुन सकती थी। मानो इस प्रेम को पहचानना ही उसके जीवन का इकलौता मकसद रह गया हो।

वहाँ एक बड़ी से पत्थर पर, बहुत पहले उगे फूलों की छाप थी। कब्र पर मरने वाले के बारे में खुदा था। वह फादर फ्रांसिस मैलो (1895-1932) की कब्र थी। अब उसे याद आया कि दादी माँ ने बताया था, ये पादरी दिव्य दृष्टि पाने के बाद दीवाना हो गया था। वह जनता के लिए उपद्रव बन गया तो उसकी झाड़-फूँक करवानी पड़ी। क्या ये उसी की कब्र थी ?

उसने चर्च में कदम रखा। खाली पड़ी बेंचों के अलावा जीसस की प्रतिमा मध्य में खड़ी, उसे धूर रही थी। वह प्रार्थना के लिए घुटनों के बल बैठ गई। उसने प्रभु को उस पल के लिए धन्यवाद दिया और इच्छा प्रकट की कि उसे किसी दूसरे युग में भेज दिया जाए। अचानक आकाश का रंग गहरा गया। यह उस चर्च पर घिर आया। मूर्ति में से तेज़ रोशनी निकली। सारे कमरे में इस तरह तेज़ रोशनी भर गई मानो किसी ने हजारों मोमबत्तियाँ जला दी हों। यह इतनी तेज़ थी कि दिव्या अपनी आँखें खुली नहीं रख सकी। वह आँखें बंद करके, डर के मारे प्रार्थना करने लगी। कुछ देर बाद उसने एक शांत, भारी स्वर सुना, ‘‘मेरी बच्ची ! लगता है कि तुम तकलीफ में हो। यहाँ क्यों आई हो ?’’

‘‘फादर ! मेरा अच्छा नसीब मुझे यहाँ ले आया। मैं जिंदगी का मकसद नहीं समझी : प्यार चाहते हो तो प्यार दो। मुझे लगता है कि निःस्वार्थ प्रेम का कोई मेल नहीं रहा। कृपया मुझे आपको जानने का अवसर दें।’’

‘‘प्रिय, मुझे जानने का अर्थ है कि तुम खुद को जानो और सारे जीवों को जानो। जब कोई सबको निःस्वार्थ भाव से प्यार देता है, तो मानो वह मुझे प्यार कर रहा है। इस तरह तुम कभी निराश नहीं होगी। कोई एक इच्छा कहो, मैं उसे पूरा करूंगा।’’

ओह फादर ! ‘‘मैं आपकी दया की आभारी हूँ, लेकिन मेरे दिलोदिमाग पर एक ही चीज छाई रहती है। मैं ‘समय’ में यात्रा करना चाहती हूँ। मैं सभ्यताओं का जन्म और पतन देखना चाहती हूँ।’’
‘‘प्रिय ! इतनी तेज गति से समय की यात्रा करोगी तो कुछ नहीं जान पाओगी। बेहतर होगा कि तुम अपने प्रवास के लिए कोई कालखंड तय करो।’’

‘‘फादर ! मैं आज से बीस साल पहले के ‘समय’ में जाना चाहती हूँ किंतु साथ ही यह भी चाहती हूं कि मैं ऐसी ही युवा ही रहूँ। मैं राहुल के घर के पास दक्षिण भारत में जन्म लेना चाहूँगी। मेरे माता-पिता मेरा ध्यान रखने वाले और स्नेही होने चाहिए। वहाँ मेरे कोई रिश्तेदार न हों, पर ढेर से दोस्त जरूर हों ! क्या यह हो सकता है, फादर ?’’ पादरी उसकी इस सोच को जान कर दंग रह गए और बोले, ‘‘तुम ऐसा क्यों चाहती हो ? लोग तो चाहते हैं कि वे अपनी उम्र से बहुत छोटे होकर, भविष्य में जाएँ।’’

‘‘फादर ! आप तो जानते हैं कि मैं इन दिनों कैसे हालात से गुज़र रही हूँ। मैंने कभी रोमियो-जूलियट के प्यार में यकीन नहीं किया। शायद यही वह है कि मुझे कभी राहुल जैसा दिलकश लड़का नहीं मिला। इस समय तो हमारा कोई भविष्य नहीं है....लेकिन हो सकता है कि अतीत में कोई हो...’’

मैं आपको बता दूँ कि राहुल मुझसे 20 साल बड़ा है। 21वीं सदी में सामाजिक कारणों की वजह से हमारा विवाह नहीं हो सकता। अगर साफ शब्दों में कहूँ तो यह ‘अव्यावहारिक है’। एक ही आयु का होने पर, हमारे रिश्तों की जटिलता काफी हद तक घट जाएगी। मैं सच्चे प्यार की गहराई भी जान लूँगी।’’

फादर फ्रांसिस उसके दृढ़ संकल्प को देख आनंदित हुए व उत्तर दिया, ‘‘मुझे भरोसा है कि तुम्हें अपने फैसले पर पछतावा नहीं होगा। मैं अपना वादा निभाऊँगा और तुम मनचाहे तरीके से जीओगी लेकिन ये बता दूँ कि मेरी कुछ शर्ते भी पूरी होनी चाहिए। तुम अपने चुने हुए परिवार के साथ सामान्य जीवन बिताओगी लेकिन तुम्हें किसी भी तरह अपने प्रवास के पहले ही महीने में राहुल का दिल जीतना होगा। अगर तुम ऐसा न कर सकीं तो इस अनंत अंतरिक्ष में हमेशा के लिए खो जाओगी। बेटा ! मेरी शर्तें समझ आ गईं ?’’

पहली बार दिव्या को जिंदगी में लगा कि काश मम्मी उसके साथ होती। उसकी मम्मी के पास मोल-तोल का ऐसा हुनर था, जिसका दुनिया में कोई सानी नहीं था। फिलहाल वह जिंदगी से इतनी तंग थी कि कोई नर्कयात्रा का प्रस्ताव भी रखता तो वह खुशी-खुशी मान लेती। उसने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मुझे आपमें व आपके न्याय पर पूरा भरोसा है। आपकी कृपा रही तो मेरी कोई हानि नहीं होगी। मुझे आशीर्वाद दें कि मैं अपने प्यार को पाने में सफल हो सकूँ।’’

मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पर इस खेल के नियम याद रखना—
1. तुम उसके सामने प्रस्ताव नहीं रखोगी।
2. तुम उसकी गर्लफ्रेंड को नीचा नहीं दिखाओगी।
3. तुम धोखे से या किसी दूसरे तरीके से शादी के लिए जबरन राजी नहीं करोगी।
4. तुम उसे हमारी बातचीत के बारे में नहीं बताओगी।

और इस तरह थकी-हारी दिव्या को एक टाइम मशीन में बिठाया गया, जो देखने में एक तोप जैसी थी। एक...दो...तीन...और वह समय से बीस साल पीछे पहुँच गई।

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